सन्तों की शिक्षा
सन्तों की शिक्षा पिछले बासठ वर्षों से मुझे तीन परम सन्तों के चरणों में बैठकर उनकी अनुभवपूर्ण शिक्षा ग्रहण करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। वास्तव में उनकी शिक्षा ही उनके जीवन का प्रमुख अंग है जिसका उल्लेख किये बिना यह पुस्तक अधूरी ही रहेगी। इसलिये उनकी शिक्षा के सार को यहाँ संक्षेप में दे रहा हूँ। सन्त सुनी सुनाई या पढ़ी-पढ़ाई बात नहीं करते। जो कुछ उन्होंने स्वयं देखा है, जिसका प्रत्यक्ष अनुभव किया है वही प्रकट करते हैं। जैसा कि दादू साहिब कहते हैं: 'दादू देखा अदीदा, सब कोई कहत सुनीदा ॥" कि लोग तो सुनी-सुनाई बात करते हैं परन्तु मैंने तो परमात्मा को प्रत्यक्ष देखा है और देखकर कह रहा हूँ। सन्त चाहे किसी भी जाति, देश अथवा समय में क्यों न आए हों, सबका एक ही उपदेश है। वे कोई नयी जाति बनाने या किसी नए धर्म की स्थापना करने नहीं आते। वे हमें जन्म मरण के बन्धनों से, मोह-माया के जाल और चौरासी के भयानक कारागृह से छुड़ाकर परमपिता परमात्मा से मिलाने के लिये आते हैं। लेकिन ऐसे महात्माओं के जाने के बाद हम बहिर्मुखी हो जाते हैं, शरीअत या कर्मकाण्ड में उलझ जाते हैं और सन्तों की असली शिक्षा को ...